ॐ मातृ वंदन ॐ
चरणों में मस्तक धरती हूं, उनको प्रणाम कर गाती हूं।
जिन मात पिता के चरणों में, परमेश्वर शीश झुकाते है।
उन मात पिता के चरणों में, यह सनाढ्य भी बलि बलि जाती है।

स्वर्गीय श्रीमती निर्मल आनंद
(13 अप्रैल 1942-24 मार्च 2007)
(13 अप्रैल 1942-24 मार्च 2007)
माँ और क्षमा दोनों एक हैं । क्योंकि माफ करने में दोनों एक हैं ।।
ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं । जहाँ में जिसका अंत नहीं, उसे माँ कहते हैं ।।
माँ पहले आँसू आते थे और तुम याद आती थी । आज तुम याद आती हो, और आँसू आते हैं ।।
ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे आसमां कहते हैं । जहाँ में जिसका अंत नहीं, उसे माँ कहते हैं ।।
माँ पहले आँसू आते थे और तुम याद आती थी । आज तुम याद आती हो, और आँसू आते हैं ।।
पुण्यात्मा श्रीमती निर्मल आनंद जी का जन्म 13 अप्रैल 1942 पेशावर पाकिस्तान में हुआ उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत की
शिक्षा प्राप्त की। बाद में उनका विवाह श्रीमान् नरेन्द्र आनंद जी के साथ 8 दिसम्बर 1960 को हुआ। दैव्य गुणों से सम्पन्न
श्रीमती आनंद जी ने चार पुत्रियों को जन्म दिया और उनके लालन पालन में माता यशोदा की भाँति आनंद विभोर होकर किया। हर समय
भगवान की अनुपम लीलाओं का गुणगान करती थी। विद्वानों द्वारा श्रवण करती थी। भगवान लक्ष्मी नारायण जी से विशेष लगाव था। वे
हमेशा उनकी भक्ति में तनलीन रहती थी। वे सामाजिक सेवा व दीन दुःखियों की सेवा में तत्पर सम्पर्ण रहती थी। वे स्वयं लक्ष्मी
की मूर्तिमान थी। धार्मिक स्थल के निर्माण में तन-मन-धन तीनों प्रकार से सेवा करती थी। सनातन धर्म मंदिर लाजपत नगर. 3 में
शिव-परिवार की प्राण प्रतिष्ठा करवाई है। नेशनल पार्क रघुनाथ मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठाऐं करवाई थी। श्री राधाकृष्ण मंदिर
डिफेंस कॉलोनी में श्री लक्ष्मी नारायण जी, श्री राधाकृष्ण जी, श्री राम दरबार, माँ भगवती, श्री शंकर भगवान जी के सब कमरे
बनवाएँ और मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई है। पूर्ण रूप से तन-मन-धन न्यौछावर कर प्रभु की असीम कृपा प्राप्त की है। धर्ममूर्ति
श्रीमती निर्मल आनंद जी की प्रेरणाओं से ओत-प्रोत श्रीमान नरेन्द्र आनंद जी प्रत्येक मास की पूर्णिमा व अमावस्या को अन्नदान
एवं प्रभु का भण्डारा करते हैं। गो ब्राह्मणों का ध्यान करते-करते दिनांक 24 मार्च 2007 को प्रभु में लीन हो गयीं। ऐसी भक्ति
स्वरूप माता श्रीमती निर्मल आनंद जी की याद में ये पत्रिका उन्हीं के चरणों में समर्पित की जाती है तथा उनके धर्म मार्ग
अपनाने की शिक्षा लेते हुऐ हम उन्हें नमन करते हैं। तथा उनकी वार्षिक पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
🙏 An Ode to My Beloved
Mother 🙏
Ngo Nirmal Sahara ® 2007 & Trust Shri NarNir Aradhana Nyaas ® 2023 is a beacon of faith and belief AND more than just names or causes, they are the embodiment of your values. Through these, I seek to continue your legacy, to spread the love and compassion that you have always shown us. With endless love and gratitude, I dedicate Ngo Nirmal Sahara and the Trust Shri NarNir Aradhana Nyaas to you, forever and always.
Adv. (Ms.) Bobby Aanand, D/o Shri. Narender & Smt.
Nirmal Anand
Gen. Secy. Ngo Nirmal Sahara® (2007) Chairman, Shri NarNir Aradhna Nyaas® (2023)